मैं और मेरे अह्सास
पिता
पिता जैसा प्यार कोई नहीं कर सकता हैं l
ख़ुद भूखा रहके बच्चों का पेट भरता हैं ll
खून पसीना पानी की तरह बहाकर वो l
दो वक्त की रोटी के लिए घूमता रहता हैं ll
भीतर से चकनाचूर हो गया हो फ़िर भी l
अपनों की ख़ुशी की ख़ातिर हसता हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह