Gujarati Quote in Poem by Umakant

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बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!

यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,

आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव, बंधु!

वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
फिर भी अपने में रहती थी,

सबकी सुनती थी, सहती थी,
देती थी सबके दाँव, बंधु!

स्रोत :पुस्तक : निराला संचयिता (पृष्ठ 154) संपादक : रमेशचंद्र शाह रचनाकार : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला प्रकाशन : वाणी प्रकाशन संस्करण : 2010
🙏🏻
- Umakant

Gujarati Poem by Umakant : 111960442
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