अपनी ही मुट्ठी में कैद स्त्री कब तक अपनी शिराओं को खोल खोल उस एक कतरे को ढूंढती रहोगी जो इस क़ायनात का हिस्सा है ही नहीं
हर वो ज़मीन बंजर निकलेगी जिसमें तुप अपने स्नेह की बीज बोओगी इसकी फसल को श्राप लगा है कब समझोगी
या तो तुम्हारे बीज दूषित हैं या हवा में जहर है या ज़मीं पथरीली है
किसी ऊंचे शिखर पर खड़े होकर ये बीज हवा में उछाल दो अब ये किसी काम के नहीं हैं इनसे पंछियों के पेट भरेंगे या ये पेड़ों पर जा गिरेंगे
पंछियों और पेड़ों से बड़ा कोई हमदर्द नहीं स्त्री !
- pooja