प्रेम तुम्हारे भीतर एक तीसरी आंख
प्रेम संसार की समझ मे नही आता, आ सकता नही; आ जाय तो संसार स्वर्ग न हो जाय ! संसार की समझ मे घृणा आती है, प्रेम नही आता ; युद्ध आ जाता है, शांति नही आती; विज्ञान आ जाता है, धर्म नही आता।
जो बाहर है उसे संसार समझ लेता है; लेकिन जो भीतर है और असली है, जो प्राणों का प्राण है, वह संसार की पकड़ से छूट जाता है। दृश्य तो स्थूल है। अदृश्य ही सूक्ष्म है― और वही है आधार। संसार तो दृश्य पर अटका होता है।
प्रेम की आंख अदृश्य को देखने लगती है। प्रेम तुम्हारे भीतर एक तीसरी आंख को खोल देता है। और स्वभावतः जिनकी वैसी आंख नही खुली है वे तुम्हे समझ न पाएंगे; वे तुम्हे पागल कहेंगे। वे हँसेंगे, मुस्करायेंगे। वे कहेंगे कि गए तुम काम से।