मैं और मेरे अह्सास
उम्मीद की कश्ती में बैठकर जिंदगी का सागर पार करने निकले हैं ll
मंज़िल तक पहुंचने के लिए आती जाती लहरों से दिन रात उलझे हैं ll
यार दोस्तों की महफिल सजी-संवरी हैं ज़ामे सुराही लिए हाथों में l
आज रोम रोम से साहिल से मधुर मुलाकात की आशा छलके हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह