ऐ ज़िंदगी!
अब किसी ठहराव का पता दे
तु ऐसा कर
घर किसी नासूर का बता दे
दर्द को इस क़लम के
ये आराम है कैसा
कोई नया ज़ख्म दे
या कोई नयी ख़ता दे
ये सूखते हुए घाव
बड़ी तकलीफ़ देते हैं
इन्हें फिर से हरा कर
या इन्हें फिर से सता दे
ख़ुशियों के ये पतझड़
इसको रास नहीं हैं
गमों के बाग़ ले चल
इसे उजाड़ कोई लता दे
कि दफ़न ग़ज़ल तड़प उठे
ले सोई नज़्म करवटें
बेचैन हो मुक्तक कोई
कराह को इतनी शिद्दत अता दे !!
- piku