मशग़ूल-ए-ग़ुरूर
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जिन्हें भी देखा उन्हें मशग़ूल-ए-ग़ुरूर पाये हर मक़ाम होते,
अगर क़दम दर क़दम वो फ़िक्र-ए-वबाल होते कमाल होते।
ये रास्ते न बुझ सके कभी तीरगी से उजाले खो गए,
जमीं पे बिखरे अगर वो ख़्वाब-ए-ज़वाल होते कमाल होते।
कहाँ किसी को मिला सुकून-ए-शाम-ए-तन्हा में आज तक,
अगर वो रातों के सारे हाले-ख़याल होते कमाल होते।
वो मुड़ गए हमें राह-ए-मोहब्बत में छोड़कर यूँही,
अगर वो रास्तों पे मेरी कोई मिसाल होते कमाल होते।
हवा के झोंकों ने उड़ा के खो के मेरे नग़मे सदा,
मेरे दिल के सफ़्हे जो झाफता होते कमाल होते।
तमाम अक्स हमारे यूँ ही साए में लिपटे रह गए,
अगर अश्कों में बहते दिल के कमाल होते कमाल होते।
वो ख़्वाब जो कभी हक़ीक़त से ज़्यादा चमके न थे,
अगर वो आँखों में मुनअक़िद से हिलाल होते कमाल होते।
ग़ज़ल में हर इक लफ़्ज़ जब बे-ख़ौफ़ बहकता चला गया,
अगर क़स्ब-ए-नक़्श-ए-ख़याल से जमाल होते कमाल होते।
कभी अदीबों के साथ बैठे वो इल्म की सूरत लिए,
वो मेरे जज़्बों की यूँही जो बहार होते कमाल होते।
कहाँ छिपा था ये हुस्न-ए-तबई हर अंदाज़ में लिपटा के,
गर वो नक़्क़ाशी से कहीं फ़िरदौस-ए-हाल होते कमाल होते।
जिन्हें सुना था कभी दास्तान-ए-इश्क़ में सुरताल में,
वो वस्ल की महफ़िल में अनक़रीब हज़ार होते कमाल होते।
सुकून की तलाश में ये रातें कभी नहीं बिता सकीं,
कहकशाँ से जुड़े हुए हुस्न-ए-मलाल होते कमाल होते।
मोहब्बत के रंगों में घुल के कभी जो मिटते जहॉं से,
वो प्यासे लम्हे अगर बहार-ए-ख़याल होते कमाल होते।
तुम्हारी आँखों के गिर्द वो जो चाँदनी झिलमिल रही,
वो छूते लफ़्ज़ अगर नक़्श-ए-ख़ास होते कमाल होते।
ये खंडहरों में छुपे निशान-ए-जुनूँ नज़र आए हमें,
वादियों में बिखरे हुए उरूस-ए-ख़याल होते कमाल होते।
वो अल्फ़ाज़ जो दिल के आईने में कहीं दिखाई दे गर,
अगर वो ज़मीं पे कहीं ज़िंदा मिसाल होते कमाल होते।
जहाँ के रंग में डूबे क़िस्सों ने हमें कुछ न बहार जोते,
खल्लास यादों में बजाऐ हुए ख़याल होते कमाल होते।
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सहज सनातन और समग्र समाज में आदरजोग सहित सप्रेम स्वरचित जुगल किशोर शर्मा बीकानेर ।