मैं और मेरे अह्सास
पावस में छाता साथ लेकर निकला करो l
तर-बतर बिना भीगे हुए तन मन में भरो ll
कहीं साथ अपने बहा ना ले जाए खुशियाँ l
अंधी धुंआधार बरसात की बौछार से डरो ll
जिस दिशा में जा रहा सैलाब उसी दिशा में l
ग़र मंज़िल तक पहुचना है बहाव में सरो ll
पावस-बरसात
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह