मैं और मेरे अह्सास

पावस में छाता साथ लेकर निकला करो l
तर-बतर बिना भीगे हुए तन मन में भरो ll

कहीं साथ अपने बहा ना ले जाए खुशियाँ l
अंधी धुंआधार बरसात की बौछार से डरो ll

जिस दिशा में जा रहा सैलाब उसी दिशा में l
ग़र मंज़िल तक पहुचना है बहाव में सरो ll
पावस-बरसात
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

English Shayri by Darshita Babubhai Shah : 111946822
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