लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है
“कुछ ऐसे ही दिन थे वो जब हम मिले थे
चमन में नहीं, फूल दिल में खिले थे
वही तो है मौसम मगर रुत नहीं वो
मेरे साथ बरसात भी रो पड़ी है
लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है”
👌
- Umakant