किसी 'अमल के हिसाब जैसे
तुझे मैं देखूँ जवाब जैसे
शबाब तेरी ये हुस्न-ए-दिल में
छलक पड़ा है शराब जैसे
यूँ ख़ूबसूरत हँसी है तेरी
खिले चमन के गुलाब जैसे
हैं मुझमें यूँ तो हज़ार बातें
मगर हूँ चुप मैं किताब जैसे
जो सुब्ह बिस्तर से मैं उठा तो
है देखा माँ को सवाब जैसे
रक़ीब से हूँ बहुत परेशाँ
गले लगा है अज़ाब जैसे
ये अब जो 'अरमान' मैं लिखा हूँ
मगर था पहले ये ख़्वाब जैसे