जैसे चांद रहे बादल में ....
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मरहम सा बन जाऊं मैं उन तकलीफों का
जिसमें खामोशी लिपटी हो
जैसे चांद मुस्कुरा कर ज़मीं पर ठहरा हो
लिख दूं मैं कुछ ऐसा जिसमें चुप्पी थमी हो
अधूरे अल्फाज़ मगर किसी की कमी छुपी हो
मैं तुझे बांध लूं आंचल में जैसे चांद रहे बादल में....
ओढ़ कर चादर चांदनी रातों का
मैं कोई खूबसूरत सा लम्हा बन जाऊं
पहचान न पाए कोई मुझे तेरे अलावा यहां
रेत की तरह बिखर कर फिर से बाहों में सिमट जाऊं
दे दूं कोई ऐसी यादों का पैग़ाम तुझे
जिसमें कोई किस्सा मुस्कुराने की वजह छोड़ जाऊं
मैं तुझे बांध लूं आंचल में जैसे चांद रहे बादल में....
शाम उतरे ज़मीं पर और तुम्हे होले से देख लूं
तुम देख पाओ मुझे उससे पहले कोई एहसास बन लूं
हकीकत से कोई वास्ता नहीं तुझे ख्वाब ही समझ लूं
सावन का बरसात ना सही आखिरी घटा ही मान लूं
मैं तुझे बांध लूं आंचल में जैसे चांद रहे बादल में....