आज नाराज ख़ुद से ही लगती हूं मैं
पर क्यों ? ये तो मुझे भी मालूम नही
अंधेरों में अक्सर छुप जाया करती हूं
कई सवालों को लेकर मैं
पर क्यों ख़ुद के जवाबों पर यकीन नहीं ?
जल जाती हूं अक्सर मैं
यूं ही चांद को देखकर
क्योंकि तारों की खूबसूरती
मैं पहचानती ही नहीं
कुछ खफा - खफा सा लगता है
धुंध में छुपा मेरा अस्तित्व
पर क्यों आंखों से दिखता ही नहीं .....
-Manshi K