सजा राम का सरयू तट है....
सजा राम का सरयू तट है।
बना कृष्ण का वंशी वट है।।
भले-बुरे की परख किसे अब,
दौड़ लगाता बस, सरपट है।
मानव भूला जिम्मेदारी,
जात-पाँत की कड़वाहट है।
नेताओं के बदले तेवर,
सबकी भाषा अब मुँहफट है।
खुला द्वार भ्रष्टाचारों का,
देखो लगा बड़ा जमघट है।
धर्म धुरंधर बने सभी अब,
घर-बाहर इनके खटपट है।
आतंकी घुसपैठी करते,
यही समस्या बड़ी विकट है।
जीवन में आया मोबाइल,
मेल-जोल का अब झंझट है।
कलम उठा कर लिखते कविता
मेरे मन की अकुलाहट है।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज