चित्र पर आधारित कविता
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माखनचोर और बंदर
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माखनचोर को निहारे बंदर
क्या है माखनचोर के अंदर
लुटा रहे हैं हम पर माखन
मानो खिला रहे हैं लंगर।
यशोदा माँ दरवाजे से निहारे
बंदर सेना आई है मेरे द्वारे
मेरा लाडला प्यार से खिला रहा
बंदर भी हैं माखनचोर के प्यारे।
माखन से भरी हुई हैं मटकी
बंदरों की निगाहें उस पर अटकी
कन्हैया के हाथों से पाकर माखन
हर्षित मन से फिर लगाए टकटकी।
आभा दवे ©
मुंबई