मैं और मेरे अह्सास
ये कैसी विडंबना में फसा हुआ है दिल?
मुकम्मल रास्ता सोचने लगा हुआ है दिल ll
नाजुकी इस नादाँ दिल की क्या कहने l
मुहब्बत की रस्सी से बंधा हुआ है दिल ll
जिन्दगी की हर साँस में समझौता किया l
अपनों की खुशी के लिए दबा हुआ है दिल ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह