*मेघ,फुहार,बिजली,गाज,बाढ़*
*मेघ* बरसते पुणे में, प्रथम जुलाई माह।
मौसम गर्मी का नहीं, है बसने की चाह।।
लक्ष्मण मूर्छित गिर पड़े, करें राम मनुहार।
*मेघ*-नाद से युद्ध में, हनुमत करें प्रहार।
*मेघ* वर्ण श्री राम जी,रहे कृष्ण घनश्याम।
रुकमणि जी या जानकी, गौर वर्ण हैं वाम।।
मेघ गरज कर रह गए, बरसी नहीं *फुहार*।
मेघों को यह क्या हुआ, जो रूठे इस बार।।
*बिजली* चमकी रात में, देख रहा गिरि मौन।
घोर गर्जना हो रही, बना निशाना कौन।।
*गाज* गिरी बरसात में, घर को रहे निहार।
बाढ़ बहा कर ले गई, दीनों के घर-बार।।
भ्रष्टाचारी छिप रहे, नहीं रहे कुछ बोल।
पुल बहते जब *बाढ़* में, खोलें उनकी पोल।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "