साड़ी का पल्लू
आदमी बेचारा दोनों के बीच पिसता,
मां हो या पत्नी का हाथ।
दोनों के मन की बातें सुनकर,
सोचता है वह किसका दे साथ।।
जिसकी तरफ भी वह बोलेगा,
दूसरा मुंह फुलाने को है तैयार।
किसी का दिल नहीं दुखाना चाहता,
क्योंकि करता है वह दोनों से प्यार।।
जन्म देकर उस मां ने,
पाल पोसकर इतना बड़ा किया।
कैसे उनका कर्ज उतरेगा,
जिसने ये जीवन दिया।।
एक लड़की भी सब कुछ छोड़कर,
अपने पति के सहारे नए घर आती।
परिवार में कोई साथ दे न दे,
पति के साथ से ही जीवन बिताती।।
सास बहू में सामजस्य बैठ जाए,
तो घर सुंदर सा बन जाता।
बहू में एक बेटी दिखने लगती,
सास में मां का अक्स नजर आता।।
वही अगर सास मीनमेख निकाले,
तो बहु का मन द्वेष से भर जाता।
छोटी छोटी बातों में तकरार होकर,
मन मुटाव दोनों के घर कर जाता।।
एक पति पत्नी का साथ दे तो,
मां कहे,छुपे रहो बीबी के पल्लू।
बेटे का अगर वह फर्ज निभाएं,
तो पत्नी बोले,बने रहो तुम लल्लू।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री