प्रिये हुआ मन *अनमना*, चली गई तुम छोड़।
सूना-सूना घर लगे, अजब लगा यह मोड़।।
*अकथ* परिश्रम कर रहे, मोदी जी श्री मान।
पार चार सौ चाहते, माँगा था वरदान।।
गिरे हमारे *आचरण*, का हो अब प्रतिरोध।
सभी प्रगति के पथ बढ़ें, यही हमारा शोध।।
दिखतीं न *अमराईयाँ*, कटे हमारे पेड़।
कहाँ गईं हरियालियाँ, चाट गईं हैं भेड़।।
अधिक नहीं *अनुपात* में, हो भोजन का लक्ष्य।
अनुशासित जीवन जिएँ, यही हमारा कथ्य।।
मनोजकुमार शुक्ल *मनोज*
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