“कोई अंतिम सच अंतिम नहीं है।
हर एक उधड़ती परत के साथ
दुःख का कोई नया दरवाज़ा खुलता है।
अवसाद के साथ प्रेम घुल-मिल गया है।
भूल सकने की सुखकर बीमारी
के साथ जीवन सुंदर लगता है।
स्मृतियाँ पत्थर पर लिखी इबारतों
से रेत में तब्दील हो रही है।
इनका अन्वेषण करने
कोई नहीं आएगा।
मैं निरीह अकेला ही
इन सबसे जूझता रहूँगा।”
🙏🏻