जीवन गेम में इस बाँल की तरह है बिखरी ! कभी फुद्दकर एक से दूसरे पाले में खुद को इकट्ठा करने की जुगत ! कभी दुखी, कभी साहस, सफलता जुटाती है फिर इक्ट्ठी होकर अपनी सुन्दरता पर फूल जाती है । गेम समाप्त ! मगर अन्ततक वह करने में ही जीती रही होने का उसे पता नहीं ।।