मैं और मेरे अह्सास
समय की चाल कोई नहीं समझ पाया हैं l
ये कृष्णा की रचाई हुई अद्भुत माया हैं ll
बहकती और चहकती जिंन्दगी बहलाने l
महकी फ़िज़ाओं ने सुरमई राग गाया हैं ll
अपनी मर्जी से कहां जी सकता है कोई l
क्या माँगा था? क्या सामाने लाया हैं?
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह