चलो करें शुचिता की बातें....
चलो करें शुचिता की बातें।
फिर गुजरेंगी अच्छी रातें।।
रुई की पोनी सुनो बनाएँ।
हम सब मिलकर धागा कातें।।
बजी दुंदुभी प्रजातंत्र में।
राजनीति की बिछीं बिसातें।।
पेटों में जब आग लगी हो।
अंदर से उबलेंगी आतें।।
चीख-चीख कर भाषण होते।
सबके दल की लगीं कनातें।।
विघ्न निशाचर खड़े हुए हैं।
करते मानवता पर घातें।।
नारों से अखबार रँगे हैं ।
स्याही की खाली दावातें।।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज
16/5/24