झूठे नकाब और नकाबो के पीछे चेहरा भी झूठा।
छुप जाते है इरादे , असली मकसद और हदे ।
मुस्कुराते चेहरों के पीछे का छल ,
बैठे–बैठे कर जाते सारे प्रपंच,
हाथ मिलाते और कहते
साथ है हम ।
लोहे का सच लोहे को नहीं पसंद
चढ़ा लिए जाते खुद पर सोने का रंग
मुझे अफ़सोस है
यहां लोगो को असली चेहरा खुद का पसंद नहीं आता,
इंसानी फितरत चढ़ा लिया है जाता मुखौटा।

-चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी

Hindi Poem by चंद्रविद्या चंद्र विद्या उर्फ़ रिंकी : 111929298

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