मैं और मेरे अह्सास
हर एक लम्हा महोब्बत में तबाह किया हमने l
इस तरह हर बार ख़ुद का हलाल किया हमने ll
हुस्न के देखने का अंदाज़ कुछ निराला कि l
तीरछी नज़रों का वार जिगर पर लिया हमने ll
मुहब्बत तो किरायेदार की तरह है आज कल l
हौसलों के धागों से फटे दिल को सिया हमने ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह