मैं और मेरे अह्सास

हर एक लम्हा महोब्बत में तबाह किया हमने l
इस तरह हर बार ख़ुद का हलाल किया हमने ll

हुस्न के देखने का अंदाज़ कुछ निराला कि l
तीरछी नज़रों का वार जिगर पर लिया हमने ll

मुहब्बत तो किरायेदार की तरह है आज कल l
हौसलों के धागों से फटे दिल को सिया हमने ll

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111927888

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