मैं और मेरे अह्सास
राख हो जायेगा ये दिल जलते जलते l
सुबह से शाम हुई याद ढलते ढलते ll
मुहब्बत के जाम में डूबे हुए खतों को l
जी ही नहीं भरता बारहा पढ़ते पढ़ते ll
इतना भी आसान नहीं यादों को मिटा दे l
वक़्त लग जाएगा ज़ख्म सिलते सिलते ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह