मैं और मेरे अह्सास
किसी के कंधे पर सर रखकर रोने के लिए l
दोस्त ही बनालो तन्हा रोने से क्या होगा?
जो भी है यही लम्हे है खुशी से जीने को l
प्यार को जतालो तन्हा रोने से क्या होगा?
ना जाने कब जीवन की शाम ढल जाए तो l
रूठे को मनालो तन्हा रोने से क्या होगा?
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह