मैं और मेरे अह्सास

जिंन्दगी में गुज़रा हुआ वक्त वापिस नहीं आता l
ग़म तो ये है कि वो वक़्त यादों से नहीं जाता ll

मुकम्मल लाख कोशिशों के बाद भी रूठ के l
जाने वालों को मुंड कर वापिस कौन लाता !

दुनिया में हर कोई है खालीपन से हरा भरा l
क़ायनात में चैन और सुकून कौन है पाता?

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111927279

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