मैं और मेरे अह्सास
न जाने साँसों का सफ़र कब ख़त्म हो l
सूबा है फ़िर से एसी सुहानी बज़्म हो?
ता-उम्र कोई किसी के साथ नहीं रहता l
काश रिश्तों को निभाने की रस्म हो ll
क़ायनात में चारो तरफ फ़ेंक आलम l
सखी सम्हालना नया कोई ज़ख्म हो ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह