मैं और मेरे अह्सास
वक्त के आगे किसीकी गर्मी टिकी नहीं है l
जिन्दगी तो किसी के लिए रूकी नहीं है l
पीले फ़लों से खेत खलियान लहराए देखो l
गर्मी के बिना आम की ऋतु खिली नहीं है ll
सूखा है जल नदी और नालों में हर कहीं l
भटकते हुए पंछी की प्यास सिली नहीं है ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह