मैं और मेरे अह्सास
कब से दर पर है खड़े रब सुने ना मेरी अर्जी l
कुछ भी हो जाए चलती है उसकी ही मर्जी ll
बड़ी आशा लगाएं हुए आज आए हैं तेरे धाम l
सुन जरा दिल की पुकार फिझाओ में गर्जी ll
गुमान में कहीं ख़ुद ही ख़ुदा ना समझ ले तो l
परिस्थितियों ही कुछ इस तरह से सर्जी ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह