मैं और मेरे अह्सास
जिस्म की आग मर कर ही शांत होती है l
उम्मीद साथ जिस्म के मज़ार में सोती है ll
उम्रभर चीजों के पीछे भागते रहते हैं और l
अरमानो की गठड़ी से सुकुनियत खोती है ll
जीवन की कोरी क़िताब में सुनहरे दिन में l
आने वाले समय के वास्ते इच्छा बोती है ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह