विषय - देखो बगिया अब मुस्काई
दिनांक - 05/03/2024
पतझड़ पीछे छूट गया,
बसंत ने ली फिर अंगड़ाई।
हरे भरे हो गए पेड़ पौधे,
फूलों से बगिया महकाई।।
बगिया में तरह तरह के,
कई सारे पौधे लगे हुए थे।
भिन्न भिन्न के फूलों से,
पौधे सारे सजे हुए थे।।
खिले हुए उन फूलों पर,
पक्षियों का आना जाना था।
फूल का रस पीते हुए,
भवरों का गुनगुनाना था।।
फूलों की सुंदरता और खुश्बू,
तन मन को महका रही थी।
देखकर हृदय गदगद हो गया,
जब बगिया मेरी मुस्कुरा रही थी।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री