प्रेम !
परिचित नहीं हूँ तुमसे ! कभी किसी से सुनती हूँ ! तो ! कभी किसी से!! व्याख्या समझ में अभी तक न आया । पाया जो भाव उससे सबको मिलाया । है कुछ भीतर जिसने प्राण तक को उलझाया । है कोशिश सुलझने की भावना में भाव को समझने की जिसने अबतक न सुकून पाया....
-Ruchi Dixit