जिस प्रकार शेरनी का दूध, स्वर्ण पात्र में ही ठहर सकता हैं। उसी तरह वेद वेदांत के विचार एक पुण्यात्मा के हृदय में ही ठहर सकते हैं।*
*विकारी और व्यभिचारी, अहंकारी लोग इन विचारों को सुनने के योग्य नहीं होते, अन्यथा सुनकर भी उन्हें समझ में नहीं आयेगा और वे उसमें दोष और अवगुण के ही दर्शन करेंगे।*
*सच्चा बनने का प्रयास करें, अच्छे स्वयं बन जायेंगे*
*नीरज असवाल *
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-Neeraj Aswal