अंधेरे की दिशा में।
अंधेरे की दिशा में चलते हुए मुझे बहुत देर हो
चुकी थी लेकिन रास्ते में प्रकाश का दूर दूर तक
नामोनिशान नहीं था। मन को किया मजबूत और
घने जंगल में कभी कभी जूगनू की चमक दिखाई
दे जाती तो दो कदम चलना संभव हो सकता था।
वो भी ज्यादा दूर नहीं चल पाया घने जंगलों में
छाई हुई वीरानी देखकर मन भयभीत हो जाता
था परन्तु फिर जूगनू दिखाई दे जाते और फिर
सफर पर अंधेरे की दिशा में चल पडता मैं।
इस तरह गुज़रते हुए पलों को याद करते हुए
फिर एक अनजानी सी हिम्मत काम आई थी। मेरी
सखि ने कभी कहा था कि अंधेरे आएं राहों में तो ना
घबराना और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए
कदम फूंक-फूंक कर चलना चाहिए। मंजिल सामने
होती है लेकिन मन हमारा अंधेरे के कारण आतंकित
होता है तथा तरह तरह के ऊलूल जलूल सोचने लगता है जो कि बिलकुल फाजिल है। प्रकृति हर
हमेशा एक द्वार बंद होते ही दूसरे द्वार खोल देती है।
यह बात सही साबित हुई। क्योंकि रास्ते पर
चलते हुए काफी देर हो चुकी थी। भय से नजर नहीं
उठा सकते थे लेकिन मुश्किल से हिम्मत करके
देखा तो कहीं खेतों के मचान पर एक लालटेन जल
रही थी। ऐसा लगा कि खेतों में पहरा देने वाले
पहरेदार हो सकते हैं। बस क्या था ? चल पड़े
अंधेरे की दिशा में और लगभग थोड़ी दूर पर ही
हमारी मंजिल थी।
बस दो मिनट में हमारा गांव आ गया था।
समय लग गया था। सांसों को नियंत्रित करने
में समय लग गए थे। गांव पहुंच कर हमने चैन की सांस ली। जब तक पहुंच नहीं गये थे तब तक मन
में उथल-पुथल चलता रहा था। परन्तु कहते हैं कि
जब ठान लिया तो चल पड़ते हैं राही अंधेरे दिशा में
अनजान राहों पर और पा जाते हैं मंज़िल अपने
अटूट विश्वास और आत्म बल तथा बुलन्द हौसले
के बल पर , यही है दृढ़ संकल्प का परिणाम जो
हमेशा सकारात्मक होता है।
-Anita Sinha