मैं और मेरे अह्सास
क़ायनात में बसंत बहार आई हुईं हैं l
सरसों की पीली चादर बिछाई हुईं हैं ll
फिझाओमें जवानी देख बुलबुल ने l
मधुर आवाज में ग़ज़ल गाई हुईं हैं ll
ऋतुओ की रानी लाई आमों में बोर l
डालीओ ने नव पत्तियाँ पाई हुईं हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह