घर का कोना कोना उसकी हसी से खनकता था......
घर के कमरे मुहँ उठाये उसके लिये खुल जाया करते थे मानो कह रहे हो तुम्हारे बिना सूना सूना लगता है ......
रसोईघर के बर्तन बुलाते रहते हैं मानो कह रहो हो आओ कुछ चटपटा सा तूफानी करते हैं.......
घर के दरवाजे उसके आने कि राह ताका करते थे मानो कह रहे हो तुम्हारे बिना हमें खोलेगा कौन .....
उसकी किताबे उसे बुलाती मानो कह रही हो आ जाओ कुछ खामोश गुफ़्तुगु करते हैं.....
उसके बिस्तर बुलाते मानो कह रहे हो आ जाओ सुकून कि नींद ले लो......
उसके बगीचे में लगे पौधे मुरझाया सा मुहँ लेकर मानो कहते हम तुम्हारे बिना सूख रहे हैं......!!
घर का कोना कोना उसके आने कि राह ताक रहा है मानो कहता आ जाओ ना हमारा जी नहीं लग रहा है......!!
घर की छत मानो कह रही आ जाओ ना तुम्हारे संग चाँद कि चांदनी में कुछ खमोश सी बातें करनी है......!!
-Madhu