किताब यादों की।
कितना कुछ लिखा है,
उस कलम ने जिसकी,
यादों वाली स्याही ,
अब खत्म सी हो गई है।
कुछ खट्टे कुछ मीठे पल थे,
कुछ सपने अपनो के थे,
कुछ पल हसीन लिखे थे ,
शब्द जो बोले नही थे उसने।
चांदनी रात लिखी थी,
इश्क के अश्क लिखे थे,
बेवफाई वाली वो रात लिखी थी,
ना जाने क्या क्या लिखा था।
संवेदनाओं से भरे पन्ने थे,
भावनाए मेरी आज भी तड़पती है,
उस देखकर सूखे गुलाब को,
जो आज भी पड़ा है मेरी,
यादों वाली किताब में।
भरत (राज)