रोज रोज की मुलाकात में,
रिश्तें कितने गहरा गए थे।
नजर किसी के लग जाने से,
क्यों कम हो गई हमारी बात।।
हमारी इस बेकरारी को,
क्या तुम कभी समझ पाओगे।
जब भी तुम्हें मौका मिले तो,
करोगे हमसे खास मुलाकात।।
ज्यादा न सही तुम,
थोड़ा ही वक्त दे देना।
कि मुझे भी लगने लगे ऐसा,
कि कोई तो है मेरे भी साथ।।
माना तुम बहुत व्यस्त रहते हो,
फिर भी करती हूं तुम्हारा इंतजार।
दिन में फुर्सत अगर न मिले,
तो दे देना एक अपनी रात।।
पूरी रात तुमसे दिल की बातें,
मैं तो कहना चाहती हूं।
लगकर तुम्हारे सीने से,
पकड़ कर सिर्फ तुम्हारा ही हाथ।।
कुछ तुम अपने दिल की कहना,
कुछ हम अपने दिल की बात।
भरकर तुम्हें अपनी बाहों में,
खो जाना है फिर सारी रात।।
इश्क, मोहब्बत की बातें,
छुपाए नहीं छुप पाती हैं।
कब अपने पराए बन जाएं,
और लगा बैठे इस रिश्ते पर घात।।
तुम्हारे यों चले जाने के बाद,
मन विचलित रहने लगा है,
आसूं झर झर बहने लगे हैं
और बह गए सारे जज्बात।।
बहते हुए इन जज्बातों में,
खत्म हो रहा अब एहसास।
अफसोस करोगे एक दिन,
बन जाए न ये दिन काश।।
किरन झा
-किरन झा मिश्री