नव युग की नव बेला में..
सोचा कुछ लिखूँ,
विषय क्या होगा, क्या रचूँ?
तब लगा जो पल भर न विस्मृत हुआ,
हृदय पर है जो अंकित हुआ..
क्यों न उसकी छवि ही खिंचू!
प्रत्येक वाक्य का होता है विराम,
परन्तु तेरा विचार कहाँ कैसे लेती थाम?
तू भाव अनन्त कभी रुका ही नहीं..
तेरा अस्तित्व विशाल कभी झुका ही नहीं...
तू चलता रहे साथ निरंतर..
तू दृग, तू अंतर।
राखी