चेहरे कितने
ना जाने कितने चेहरे लेकर आते हैं बाजीगर।
कभी लेकर आते हैं खुशियां तो बन जाते हैं
खुशियों के सौदागर।
ना जाने कितने भावों को मन में लेकर आते हैं
ये कुशल कारीगर।
सोचते हैं मुझसे ज्यादा कुशल कोई है ही नहीं।
मगर होता वही है जो मंजूरे खुदा होता है।
वक्त की मार से वो अपने कर्मों से जुदा हो
जाता है।
उल्टे करने की ताक में चेहरे छिपाने के लिए
अपने स्टाईल बदलते हैं।
कभी वस्त्र जो किसी ने नहीं देखा हो वो पहनते हैं।
तेज आवाज में म्यूजिक चलाते हैं तो कभी
मशीन चलाते हैं।
चेहरे बदलने से लोग नहीं बदल सकते हैं।
क्योंकि ताड़ने वाले कयामत की नजर रखते हैं।
सबसे ऊपर बनाने वाले से क्या हम बच सकते हैं।
सच है कि जब तीसरी आंख खुल गयी तो
क्या से क्या हो सकते हैं जो हम नहीं जानते हैं।
चालाकी और कूटनीति ऐसी कि समझने में देर
भले लग जाती है मगर अंधेर नहीं हो सकती है।
बुद्धि इतनी तीव्र होती है इनकी कि आंखों के
इशारे पर काम बना लेते हैं।
परन्तु किया है जिसके लिए ये रचना कल्पना वो
तो धराशाई हो जाती है।
नारायण के चरणों में रहकर तुरंत कामना पूरी
होती है और मनोवांछित सफलता प्राप्त होती है।
नहीं कर सकते हैं कर्मों का हिसाब हम।
होगा वहीं हिसाब जो बीज बोए जाते हैं उसे
काटेंगे हम।
मतलब पूरा नहीं होता है रावण का हो जाता है
तुरंत अति का अंत।
जब तक रहते हैं अन्न जल पर अधिकार।
होता है जीवन में आशा का नवसंचआर।
यह रचना बिल्कुल काल्पनिक है इसका किसी से भी लेना देना नहीं है। यदि भूल से भी मेल मिलाप हो जाता है तो वह मात्र एक संयोग है। लेखक जिम्मेदार
नहीं है।
-Anita Sinha