*सुमुख,एकदंत,गजकर्णक,*
*गणाध्यक्ष, भालचंद्र,विनायक,धूम्रकेतु*
1 सुमुख
करूँ सुमुख की अर्चना, हरें सभी के कष्ट।
गौरी-शिव प्रभु नंदना, रोग शोक हों नष्ट।।
2 एकदंत
एकदंत रक्षा करें, हरते कष्ट अनेक।
दयावंत हैं गजवदन,जाग्रत करें विवेक।।
3 गणाध्यक्ष
गणाध्यक्ष गजमुख प्रभु, हर लो सारे कष्ट।
बुद्धि ज्ञान भंडार भर, कभी न हों पथभ्रष्ट।।
4 भालचंद्र
भालचंद्र गणराज जी, महिमा बड़ी अपार।
वेदव्यास के ग्रंथ को, लेखन-लिपि आकार।।
5 विनायक
बुद्धि विनायक गजवदन, ज्ञानवान गुणखान ।
प्रथम पूज्य हो देव तुम, करें सभी नित ध्यान ।।
6 धूम्रकेतु
धूम्रकेतु गणराज जी, इनका रूप अनूप।
अग्र पूज्य हैं देवता, चतुर बुद्धि के भूप।।
7 गजकर्णक
गजकर्णक लम्बोदरा, विघ्नविनाशक देव।
रिद्धि सिद्धि के देवता, हरें कष्ट स्वयमेव।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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