जिन्दगी हैरान भी करती है! मंत्रीजी के गले में हार पहना कर, दबंग चोराहे पर खड़े रहेड़ी लगा रहे, अण्डेवाले को हड़काया, दो तीन बार में अकेले ने ही आठ दस चट कर लिये, धौस उपर से, पैसे कभी देना सीखा ही नहीं, खैर मेरी बस आ ही गई मै तो चुपचाप बैठ निकल ही लिया।
झुठ की मोहब्बत या यू नफरत से जी, सजा कलेवा
मुफलिसी में अजगर, दावत में चमजा मजा जमेगा
भुले है रास्ता, दंबग को देख कर,
फिर तो काफिर नाम ठीक ही है
बुत भी अच्छा है, नफरत और मोहब्बत
इन सबमें दूर रह कर
नामालूम चौकीदार बस शोर है
आवाज दबी सी, चोर है चौर है