अहंकारग्रहान्मुक्तः स्वरूपमुपपद्यते ।चन्द्रवद्विमलः पूर्णः सदानन्दः स्वयंप्रभः ॥ क्रियानाशाद्भवेच्चिन्तानाशोऽस्माद्वासनाक्षयः ।वासनाप्रक्षयो मोक्षः सा जीवन्मुक्तिरिष्यते ॥ We must be careful more than ever what we let our hearts believe in. I never heard sound and thrill of my painful heart until that very day she touched it. मन वाणी कर्म और लेखन के सामजस्य के साथ सघन जीवनयात्रा में सस्कृति के प्रभाव,संयोजन और विविध रूप में लगाव ही सास्कृतिक हरास में मुक्ति और कल्पित बाहय प्रभुत्व के लगातार बहाव के हटाया जा सकेगा ।