किताबें पूछती हैं हमसे ….????
हे मनुज !
क्यों तू मेरी तरह खुला नहीं है ?
क्यों तेरे मन का मैल धुला नहीं है ?
क्यों तुझे हर कोई पढ़ नहीं पाता ?
क्यों तेरी थाह कोई जान नहीं पाता ?
क्यों तू अपना बनकर स्वाँग रचाता है ?
क्यों विश्वास किसी का बलि चढ़ाता है ?
जीवन में कुछ करना है तो मुझ सरीखा बन ,
पाषाणी हृदय द्रवित कर ,जीव तू अनोखा बन ।