दिखावे का चलन बढ़ा हैं अब सब खुल्लम खुल्ला हैं।
कोठी अन्दर आज क्या हैं होता शहर में उसका हल्ला हैं।।
हर हाथ में हैं आज कैमरा हर व्यक्ति डायरेक्टर बना।
घर घर में हैं आज नायका हर एक आवारा एक्टर बना।।
ठेटर आज मोबाइल बना हैं रील जहाँ होती हैं रिलीज़।
लाइक कमेन्ट की खातिर हीं सबने लांघी हैं दहलीज।।
चाल चरित्र अब रहें नहीं हैं चित्र में हीं सभी समाए हैं।
अपने हीं हाथों से अपनी इज्जत के चिथड़े उड़वाए हैं।।
हमने पढे लिखों के तर्क सुने हैं कहती हैं हम हैं आजाद।
आजादी का अर्थ नग्नता हीं समझा हैं उनने आज।।
जब ऐसा हीं करना था तो क्यों पद्मिनी ने जोहर व्रत लिया।
क्यों कूदी अग्नि में संयोगिता क्यू उसने अग्नि-आहूत किया।।
समझ सको तो जरा समझ लो पन्नाधाय का बलिदान।
अपने लाल का बलिदान दे कर बन गयी वह माँ महान।।
सोच रहा बैठा दिनेश हैं आज आज़ादी की असल कहानीं।
इसी नग्नता की खातिर क्या बलिदान हुई झांसी की रानी।।