“प्रेम “
अकारण है
अंशों - अष्टावक्र महागीता, भाग -6
लैला सिर्फ मजनूं को सुंदर दिखाई पडती थी, किसी को सुंदर नहीं दिखाई पड़ती थी।
गांव के सम्राट ने मजनूं को बुलाकर कहा कि मुझे तुझ पर दया आती है पागल! यह लैला बिलकुल साधारण है और तू नाहक दीवाना हुआ जा रहा है। यह देख—एक दर्जन स्त्रियां उसने खड़ी कर दीं महल से। इनमें से सूर कोई भी चुन ले। तुझे रास्ते पर रोते देखकर मैं भी दुखी हो जाता हूं। और दुख और भी ज्यादा हो जाता है कि किस लैला के पीछे पड़ा है? काली—कलूटी है, बिलकुल साधारण है। ये देख इतनी सुंदर स्त्रियां।
मजनूं ने गौर से देखा, कहने लगा, क्षमा करें। इनमें लैला कोई भी नहीं है।
फिर वही बात, सम्राट ने कहा, लैला में कुछ भी नहीं रखा है।
मजनूं कहने लगा, आप समझे नहीं। लैला को देखना हो तो मजनूं की आंख चाहिए। मेरी आंख के बिना आप देख न सकेंगे। लैला होती ही मजनूं की आंख में है।
तो तुम जिस स्त्री के प्रेम में पड़ गये हो, तुमसे कोई पूछे क्यों पड़ गये? तो तुम कहते हो, सुंदर है। तुम कहते हो, उसकी वाणी मधुर है। तुम कहते हो, उसकी चाल में प्रसाद है। मगर ये सब बातें झूठ हैं। तुम प्रेम में पड़ गये हो इसलिए चाल में प्रसाद मालूम पड़ता, वाणी मधुर मालूम पड़ती, चेहरा सुंदर मालूम पड़ता। कल जब तुम्हारा सपना टूट जायेगा, यही चाल बेढब लगने लगेगी और यही वाणी कर्कश हो जायेगी और यही चेहरा अति साधारण हो जायेगा। यह एक सपना है जो तुमने प्रेम के कारण देखा।
प्रेम अकारण है।
ओशो 🌸, अष्टावक्र महागीता, भाग -6
प्रेम आनंद है, सुन्दर है, पावन है,प्राण है,पूज्य है, पुजा है, ईश्वर का स्वभाव है ।
પ્રેમ હી ઈશ્વર પ્રાપ્તિ કા માધ્યમ હૈ,,,!
સુપ્રભાત !