नारी
नारी को कोई समझ नहीं सका,
सरल स्वभाव में अबला रूप।
कभी रौद्र सा रूप देखा तो,
समझा उसे शक्ति का स्वरूप।।
नारी बहुत ही कोमल हृदय है,
सबका दुःख महसूस है करती।
दूसरे के दुःख को महसूस करके,
अपना अंतर्मन आंसू से भरती।।
नारी जितनी सरल होती है,
कभी बन जाती इतनी कठोर।
जब अपनों को कोई घाव देता,
झेलना पड़ता हैं फिर उसका प्रकोप।।
कमजोर समझकर किसी नारी का,
कभी भी अपमान नहीं करना।
सम्मान दोगे तो सम्मान पाओगे,
नहीं तो अपमान का भरोगे भरना।।
नारी अगर एक फूल है,
समय पर कांटा भी बन जाती।
सामने वाले पर निर्भर करता,
कौन सी इज्जत उसको है भाती।।
दो मीठे बोलो में एक नारी,
सब कुछ अपना भुला देती है।
सपनें देखे थे जो भी उसने,
उनको हमेशा के लिए सुला देती है।।
बस चाहती सबसे अपनापन,
कोई भी उससे कभी न रूठे।
संबंध इतने मजबूत हो कि,
कोई भी रिश्ता कभी न टूटे।।
किरन झा मिश्री
ग्वालियर मध्य प्रदेश
-किरन झा मिश्री