“खुश रहो आगल-ए-वतन हम तो सफर करते हैं “
““ - दर-ओ-दिवार पे हसरत-ए-नजर करते हैं
दार-ओ-दिवार पे हसरत-ए-नज़र करते है
खुश रहो आहल-ए-वतन हम तो सफर करते हैं
हम भी आराम उठा सकते हैं घर पर रहकार
हमको भी पला था मन-बाप ने दुख सह सहकार
वक्त-ए-रुखसत उन्हें इतना भी न कह कर ऐ
भगवान में अनु जो टपके कभी रुख से बहकर
सिर्फ उनको ही समझाना
सिर्फ उनको ही समझाना, दिल के बहाने को
सिर्फ उनको ही समझाना, दिल के बहाने को
सिर्फ उनको ही समझाना
अपनी किस्मत में अजर से ये सितम रखा था
रंज रखा था ?? गम रखा था
किस्को पर्व थी और किसमें ये दम रखा था
हमने जब वादी-ए-कुब्रत में कदम रखा था
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझने को
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझने को
दूर तक याद-ए-वतन आई
दिल फिदा करते हैं क़ुबरन जिगर करते हैं
पास जो कुछ है वो माता की नज़र करते है
खाना पीना कहा से किए कर करते हैं
खुश रहो आहल-ए-वतन हम तो सफर करते हैं
जेक आबाद करेंगे
जेक आबाद करेंगे किसी विराने को
जेक आबाद करेंगे किसी विराने को
जेक आबाद करेंगे
नौजवानो यही मौका है उठा खोल खेलो
खिदमत-ए-कौम में जो आए बाला सब झेलो
देश आज़ाद हो क्या गम है जवानी दे दो
फिर मिलेगी ना ये माता की दुआएं ले लो
देखे कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लेन को
देखे कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लेन को
🙏🏻. 🙏🏻. 🙏🏻. 🙏🏻
- Umakant
“सौजन्य मातृभारती