मेरी तरह .......
क्या मेरी तरह तुम भी काँटों से भरे गुलाब हो ?
काँटों से घिरकर ही तो तुम बने लाजवाब हो
काँटों की हिफ़ाज़त से नन्ही कली से फूल खिला
संघर्षों से ही मानव को इस जीवन में लक्ष्य मिला
काँटों ने किया जिसका भी रक्षण
कोई न कर सका उसका भक्षण
जैसे मैं खिलकर बगिया में महका
कभी वेदी, कभी वेणी में तो चहका
मिटकर भी सदा इत्र - सा महकाता हूँ
भोर या बरखा हो, चाहे अमावस की रात हो
विपत्ति - पथ में शूल रहें या सुख की बात हो
वैसे ही तुम भी जीवन में महकते सदा रहना
कंटक वन से साथी मेरे तुम आगे बढ़ते रहना